Monday, March 11, 2019

एक शाम...

एक और शाम ढल रही है...
इस वक़्त में बंदिशों से बाहर आकर देखो,
तो दुनिया कि ख़ूबसूरती का अजब सा एहसास होता है,

नीले आसमां में कला के जैसे बिखरी छटा अब धुंधला रही है...
शाम सो रही है... 

रंग की एक लकीर क्षितिज के एक कोने में अब भी बाकी है...

चंद बादलों से घिरा आसमान कितना शांत है...
धूमिल मगर साफ़,

उसे अपना चारों तरफ़ फैला अंतहीन रास्ता मालूम है... 
मंज़िल कहाँ अहम थी कभी...



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