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Thursday, March 14, 2019

शगल

मंज़िलों और रास्तों में फर्क क्या है पूछिए,
तो मैं कहूँगी,
एक अंत है और दूसरा अनंत है सफर में ,
अंत किसने चाहा असल में!

अपने और दूजे के गम तराज़ू में तोलिये,
अपना पलड़ा भारी लगेगा!
यूँ ग़लतफहमी में जिए तो अनुभव किसने पाया असल में !

रुसवाइयों और तन्हाइयों का साथ क्यूँ है सोचिए,
सफर में मुसाफिर हरदम अकेला है,
और तकलीफों में साथ किसीने निभाया क्या असल में !

स्वर को संगीत जो दे दिया है,
ईश्वर ने भी खुद को पाना है सिखाया, इस शगल में | 

मज़हबों और जातियों का फर्क क्यूँ हुआ कहिए,
स्वयं को सर्वोत्तम समझने की भूल जो की है मानव ने,
कोई चैन से रह कहाँ पाया है अहं के इस दखल में !

जीवन की कहानी है क्या, चंद लफ़्ज़ों में जी लीजिए,
जीवन तो है इसी एक पल में,
न है आज, और न ही कल में !!

Monday, October 22, 2012

बस यही एक पल हो ज़िंदगी में

चाँद आज भी था उतना ही खूबसूरत,
शायद वही एक है जो हर रोज़ बदलता है,
और फिर भी बदलता नहीं |

बैंगनी छटा अँधेरी रात को बनाती और खूबसूरत, हरे पेड़ों के आसपास छाकर,
उस एक पल का वो नज़ारा कैसी छाप छोड़ जाता है मन पर,
जीना चाहता है ये फिर उसी पल में,
चाहता है ज़िंदगी में हर एक पल हो इसी के जैसा,
या फिर बस यही एक पल हो ज़िंदगी में,

सोच रही हूँ क्या था उस पल में आकर्षण,
जवाब है ये, कि उसमे उलझनें नहीं थीं,
हर रंग दूसरे में घुल सा रहा था,
फिर भी था कितना अलग हर एक से,

कितना पाक़, कितना साफ़,
कोई वहम नहीं, कोई भय नहीं,
बस प्रेम, ईश्वरीय अनुभूति वो,
निर्मल, निश्छल,
विराट किन्तु कितनी सूक्ष्म,
अलौकिकता उस पल की,
यूँ शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है,
उसे तो बस जिया जाना चाहिए !!

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