Saturday, June 30, 2012

अनमोल

कितना अजीब सफर है ज़िंदगी,
अन्जाने ही लोग कैसे अपने हो जाते हैं,
किस राह से बिछड़ किस मंज़िल पर मिल जाते हैं | 

शायद समझा ही नहीं तुम्हें कभी मैंने पूरी तरह,
राहें हमारी मिल कर अलग होती रहीं,
पर तुम्हारी दोस्ती थी हर राह में साथ मेरे,
जाना ही नहीं था कि सफर आसान तो इसी ने किया था मेरा,

तुम्हारी भावनाओं से हरदम रही अन्जान,
हर वक़्त बस यही रहा यकीन,
कि तुम्हारे लिए नहीं है ज़िंदगी में अहमियत भावनाओं की,
पर मैं गलत थी,
और खुश हूँ की ऐसा है,

आज जाकर हुआ एहसास,
कि दूरियाँ नहीं करतीं अलग दिलों को,
जुड़े रहते हैं मन के तार,
अपने चाहे जहाँ रहें,
तुम्हें बस शुक्रिया अदा करना है,
मेरे साथ होने के लिए,
दूर रहकर भी मन के पास होने के लिए,

तुम्हें न हो गर यकीन फिर भी,
ये दोस्ती मेरे लिए हमेशा अनमोल रहेगी | 

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