Thursday, March 14, 2019

शगल

मंज़िलों और रास्तों में फर्क क्या है पूछिए,
तो मैं कहूँगी,
एक अंत है और दूसरा अनंत है सफर में ,
अंत किसने चाहा असल में!

अपने और दूजे के गम तराज़ू में तोलिये,
अपना पलड़ा भारी लगेगा!
यूँ ग़लतफहमी में जिए तो अनुभव किसने पाया असल में !

रुसवाइयों और तन्हाइयों का साथ क्यूँ है सोचिए,
सफर में मुसाफिर हरदम अकेला है,
और तकलीफों में साथ किसीने निभाया क्या असल में !

स्वर को संगीत जो दे दिया है,
ईश्वर ने भी खुद को पाना है सिखाया, इस शगल में | 

मज़हबों और जातियों का फर्क क्यूँ हुआ कहिए,
स्वयं को सर्वोत्तम समझने की भूल जो की है मानव ने,
कोई चैन से रह कहाँ पाया है अहं के इस दखल में !

जीवन की कहानी है क्या, चंद लफ़्ज़ों में जी लीजिए,
जीवन तो है इसी एक पल में,
न है आज, और न ही कल में !!

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