Thursday, March 14, 2019

पिंजरा

पिंजरे में कैद उस नन्ही सी जीव को देख आज ये एहसास हुआ,
कि बंधा हुआ तो इंसान भी है दुनिया के मोहपाश में,
छटपटा उठता है इसीलिए ही समय समय पर,
जब जब उसे दीवारों से घिरे होने का आभास होता है | 

बेचैन हो उठता है मन,
कोशिश में लग जाता है हर बंधन तोड़ देने की,
ठीक उसी तरह, जैसे उस छोटी सी जान का निरंतर प्रयास है, 
आज़ादी पाने का,
इस बात से अन्जान,
कि ये बंधन बड़ी ही कठोरता से जकड़े हुए हैं उसे,
इन्हें तोड़ना तो मुमकिन ही नहीं शायद,

आखिर नामुमकिन भी तो मुमकिन है,
पर इस मन का क्या किया जाए,
ये तो सच्चाई स्वीकारना ही नहीं चाहता,

माया तो है उस छोटे से पिंजरे में और भी,
जिसे देख कर ही फँस गया था ये,
पर इसे भूख से ज़्यादा आज़ादी प्यारी है,
हो भी क्यूँ न,
आज़ाद फ़िज़ाओं में जीवित होने का आनंद ही कुछ और है | 

कभी-कभी थम जाता है फिर उसका प्रयास,
कुछ वक़्त के लिए,
क्षण भंगुर आराम तो चाहिए,
पर फिर लग जाता है मन,
अपनी चाहत को पूरी करने में,

चलता रहता है निरंतर,
रुक कर हार जाना तो इसका स्वभाव नहीं,
इस बार दुगुनी उम्मीद और जज़्बा लिए मन में,
फिर इस बात से अन्जान,
कि ये कश्मकश तो,
जब तक ज़िन्दगी है,
चलती ही रहेगी,
पर इस कश्मकश में तो किसी और बात का ख्याल ही नहीं रहता इसे | 

कितने ही पल यूँ ही व्यर्थ गवाँ देते हैं हम,
जबकि इन छोटी-छोटी खुशियों को बटोर लेना था,
जो थी तो हमारी अपनी ही,
पर थे हम उन्हीं से उन्मुख,
जी लेना था हर उस खूबसूरत पल को !

जी लो अब भी,
वक़्त तो है,
शुक्रगुज़ार रहो,
कि ज़िन्दगी तो बंधनों में भी कुछ खूबसूरत है,
और ज़िंदा होने का एहसास बयाँ करने को,
लफ्ज़ भी कम पड़ जाते हैं !!

शगल

मंज़िलों और रास्तों में फर्क क्या है पूछिए,
तो मैं कहूँगी,
एक अंत है और दूसरा अनंत है सफर में ,
अंत किसने चाहा असल में!

अपने और दूजे के गम तराज़ू में तोलिये,
अपना पलड़ा भारी लगेगा!
यूँ ग़लतफहमी में जिए तो अनुभव किसने पाया असल में !

रुसवाइयों और तन्हाइयों का साथ क्यूँ है सोचिए,
सफर में मुसाफिर हरदम अकेला है,
और तकलीफों में साथ किसीने निभाया क्या असल में !

स्वर को संगीत जो दे दिया है,
ईश्वर ने भी खुद को पाना है सिखाया, इस शगल में | 

मज़हबों और जातियों का फर्क क्यूँ हुआ कहिए,
स्वयं को सर्वोत्तम समझने की भूल जो की है मानव ने,
कोई चैन से रह कहाँ पाया है अहं के इस दखल में !

जीवन की कहानी है क्या, चंद लफ़्ज़ों में जी लीजिए,
जीवन तो है इसी एक पल में,
न है आज, और न ही कल में !!

Monday, March 11, 2019

एक शाम...

एक और शाम ढल रही है...
इस वक़्त में बंदिशों से बाहर आकर देखो,
तो दुनिया कि ख़ूबसूरती का अजब सा एहसास होता है,

नीले आसमां में कला के जैसे बिखरी छटा अब धुंधला रही है...
शाम सो रही है... 

रंग की एक लकीर क्षितिज के एक कोने में अब भी बाकी है...

चंद बादलों से घिरा आसमान कितना शांत है...
धूमिल मगर साफ़,

उसे अपना चारों तरफ़ फैला अंतहीन रास्ता मालूम है... 
मंज़िल कहाँ अहम थी कभी...



Friday, March 8, 2019

शायद परछाई ही सच है...


इमारत तो स्थिर रहती है पर डगमगा जाता है प्रतिबिम्ब,
जब आईने को सहारा नहीं मिलता,

धोखा है ये तो क्या सच है?
क्या परछाई सच है?

अगर है, तो कैसे भरोसा करे कोई... उसमें तो छवि और भी मिली होती है... 
धुंधला होता है प्रतिबिम्ब, उसमे आईने  की नज़र होती है... 

फ़िर वो इमारत ही सच्ची होगी... 
पर कैसे... सच टूट कर बिखरता तो नहीं कभी... 
नींव से चोटी तक एक जैसा होता है... 
कोई सहारा नहीं होता... 
सच खुद ही नींव है... 

सच की तलाश का सफर जाने कब से जारी है,
जाने कब ख़त्म होगा... 

यूँ तो परछाई का क्या है तस्वीर से भी रिश्ता... 
तस्वीरें तो अक्सर टूट जाया करती हैं... 
परछाई कायम रहती है... किसी भी आकार में ढल जाती है,
कोई रंग नहीं होता इसका... 
तस्वीरों में तो रंग बदल जाया करते हैं... 

परछाई ही है अनंत... हर रूप में अटूट... 
शायद परछाई ही सच है...

Saturday, March 2, 2019

To Wish for You Bliss...

Life will present to you,
The gift of experiences…
Good or bad, value them.

Sometimes time will be tough…
It will pass, refuse to give up.

Some days you will feel you are too mature to be nervous or excited…
Bring out the child in you…and laugh harder.

There will be moments of loneliness that seem to be passing like ages…
Remember that you have a friend here, and that’s forever.

And please don’t forget, you are one of the finest people I have ever met…
Stay the same, no matter what.

And this is to tell you that your presence is cherished…
And to wish for you bliss, that lasts for a lifetime.

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