चाँद आज भी था उतना ही खूबसूरत,
शायद वही एक है जो हर रोज़ बदलता है,
और फिर भी बदलता नहीं |
बैंगनी छटा अँधेरी रात को बनाती और खूबसूरत, हरे पेड़ों के आसपास छाकर,
उस एक पल का वो नज़ारा कैसी छाप छोड़ जाता है मन पर,
जीना चाहता है ये फिर उसी पल में,
चाहता है ज़िंदगी में हर एक पल हो इसी के जैसा,
या फिर बस यही एक पल हो ज़िंदगी में,
सोच रही हूँ क्या था उस पल में आकर्षण,
जवाब है ये, कि उसमे उलझनें नहीं थीं,
हर रंग दूसरे में घुल सा रहा था,
फिर भी था कितना अलग हर एक से,
कितना पाक़, कितना साफ़,
कोई वहम नहीं, कोई भय नहीं,
बस प्रेम, ईश्वरीय अनुभूति वो,
निर्मल, निश्छल,
विराट किन्तु कितनी सूक्ष्म,
अलौकिकता उस पल की,
यूँ शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है,
उसे तो बस जिया जाना चाहिए !!
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