Sunday, July 28, 2019

एक नया ख्वाब

आज मैंने चाँद को देखा,
अधूरा था वो आज,
थी पर उसमें उतनी ही कशिश,
रुक गई थीं निगाहें वहीं,
दर्द जैसे मैं भूल गई थी | 

यूँ तो ज़िंदगी भी है उसी की तरह,
कभी पूरी लगती है,
तो कभी अधूरी | 
कोई तो कमी सी रहती है हर लम्हा इसमें,
हर पल कोई खलिश सी है,
कि जीवन नहीं हो पाता संपूर्ण कभी | 
और कुछ तो है जो कहीं हर खालीपन को भरता है,
एहसास कराने पूर्णता का | 

मैं देख रही थी चाँद को,
खुले आसमान में, तारों के साये तले,
लगा जैसे पूछ रहा हो मुझसे, मुस्कुरा रहा हो मुझे देख कर,
कह रहा हो,
"क्यूँ थम गईं तुम यूँ चलते-चलते,
क्या तलाश रही हैं तुम्हारी बेचैन निगाहें इस अंधकार की चाँदनी में ?"

कहा मैंने उसे "बस थोड़ा सा सुकून !
क्या तुम दे पाओगे मुझे?
जब नज़रें झुका कर देखती हूँ, 
तो चारों ओर दिखती हैं बस दीवारें,
कहीं पत्थरों की,
कहीं नफरतों की,
खुद को जकड़ा हुआ, बेबस सा महसूस करती हूँ | 

जब उठाती हूँ नज़रें और यत्न करती हूँ,
क्षितिज के पार जाने का,
हो जाएँ ताकि अलग,
निर्मलता और सरलता, यहाँ के बंधनों से,
रहें उन्मुक्त, आज़ाद,
आखिर यही तो उनकी प्रकृति है | 

इस शगल में मेरे, मुझे तुम दिखते हो,
उस खुले आसमान में,
जहाँ कोई दीवारें नहीं, कोई ज़ंजीरें नहीं,
ना ही है कोई रास्ता,
बस ख्वाब हैं, वही रह सकते हैं वहाँ,
और आज ये चाँदनी है,
कुछ पूरी सी,
कुछ अधूरी सी | 

क्या तुम रहोगे साथ,
क्या थामोगे मेरे ख़्वाबों का हाथ ?
माना ये तुम्हारी अपनी रोशनी नहीं,
पर इस रोशनी में जलना तो तुमने भी बहुत खूब सीखा है | 

क्या दे पाओगे इन आँखों को वो शीतलता, 
जो इस मन को ज़मीं पर नहीं मिल पाती?
क्या दे पाओगे तुम मुझे वो सुकून, 
जिसके लिए खड़ी हूँ मैं आज यहाँ,
तुम्हें निहारते हुए ?"

मैं इंतज़ार में थी एक जवाब के,
वो मुस्कुराया और कह गया सब कुछ इन चंद लफ़्ज़ों में ,

"इन आँखों के बुझने में वक़्त है अभी,
जीने का बहाना जो चाहिए तुम्हें,
जाओ मैंने तुम्हें एक नया ख्वाब दिया!"

Thursday, March 14, 2019

पिंजरा

पिंजरे में कैद उस नन्ही सी जीव को देख आज ये एहसास हुआ,
कि बंधा हुआ तो इंसान भी है दुनिया के मोहपाश में,
छटपटा उठता है इसीलिए ही समय समय पर,
जब जब उसे दीवारों से घिरे होने का आभास होता है | 

बेचैन हो उठता है मन,
कोशिश में लग जाता है हर बंधन तोड़ देने की,
ठीक उसी तरह, जैसे उस छोटी सी जान का निरंतर प्रयास है, 
आज़ादी पाने का,
इस बात से अन्जान,
कि ये बंधन बड़ी ही कठोरता से जकड़े हुए हैं उसे,
इन्हें तोड़ना तो मुमकिन ही नहीं शायद,

आखिर नामुमकिन भी तो मुमकिन है,
पर इस मन का क्या किया जाए,
ये तो सच्चाई स्वीकारना ही नहीं चाहता,

माया तो है उस छोटे से पिंजरे में और भी,
जिसे देख कर ही फँस गया था ये,
पर इसे भूख से ज़्यादा आज़ादी प्यारी है,
हो भी क्यूँ न,
आज़ाद फ़िज़ाओं में जीवित होने का आनंद ही कुछ और है | 

कभी-कभी थम जाता है फिर उसका प्रयास,
कुछ वक़्त के लिए,
क्षण भंगुर आराम तो चाहिए,
पर फिर लग जाता है मन,
अपनी चाहत को पूरी करने में,

चलता रहता है निरंतर,
रुक कर हार जाना तो इसका स्वभाव नहीं,
इस बार दुगुनी उम्मीद और जज़्बा लिए मन में,
फिर इस बात से अन्जान,
कि ये कश्मकश तो,
जब तक ज़िन्दगी है,
चलती ही रहेगी,
पर इस कश्मकश में तो किसी और बात का ख्याल ही नहीं रहता इसे | 

कितने ही पल यूँ ही व्यर्थ गवाँ देते हैं हम,
जबकि इन छोटी-छोटी खुशियों को बटोर लेना था,
जो थी तो हमारी अपनी ही,
पर थे हम उन्हीं से उन्मुख,
जी लेना था हर उस खूबसूरत पल को !

जी लो अब भी,
वक़्त तो है,
शुक्रगुज़ार रहो,
कि ज़िन्दगी तो बंधनों में भी कुछ खूबसूरत है,
और ज़िंदा होने का एहसास बयाँ करने को,
लफ्ज़ भी कम पड़ जाते हैं !!

शगल

मंज़िलों और रास्तों में फर्क क्या है पूछिए,
तो मैं कहूँगी,
एक अंत है और दूसरा अनंत है सफर में ,
अंत किसने चाहा असल में!

अपने और दूजे के गम तराज़ू में तोलिये,
अपना पलड़ा भारी लगेगा!
यूँ ग़लतफहमी में जिए तो अनुभव किसने पाया असल में !

रुसवाइयों और तन्हाइयों का साथ क्यूँ है सोचिए,
सफर में मुसाफिर हरदम अकेला है,
और तकलीफों में साथ किसीने निभाया क्या असल में !

स्वर को संगीत जो दे दिया है,
ईश्वर ने भी खुद को पाना है सिखाया, इस शगल में | 

मज़हबों और जातियों का फर्क क्यूँ हुआ कहिए,
स्वयं को सर्वोत्तम समझने की भूल जो की है मानव ने,
कोई चैन से रह कहाँ पाया है अहं के इस दखल में !

जीवन की कहानी है क्या, चंद लफ़्ज़ों में जी लीजिए,
जीवन तो है इसी एक पल में,
न है आज, और न ही कल में !!

Monday, March 11, 2019

एक शाम...

एक और शाम ढल रही है...
इस वक़्त में बंदिशों से बाहर आकर देखो,
तो दुनिया कि ख़ूबसूरती का अजब सा एहसास होता है,

नीले आसमां में कला के जैसे बिखरी छटा अब धुंधला रही है...
शाम सो रही है... 

रंग की एक लकीर क्षितिज के एक कोने में अब भी बाकी है...

चंद बादलों से घिरा आसमान कितना शांत है...
धूमिल मगर साफ़,

उसे अपना चारों तरफ़ फैला अंतहीन रास्ता मालूम है... 
मंज़िल कहाँ अहम थी कभी...



Friday, March 8, 2019

शायद परछाई ही सच है...


इमारत तो स्थिर रहती है पर डगमगा जाता है प्रतिबिम्ब,
जब आईने को सहारा नहीं मिलता,

धोखा है ये तो क्या सच है?
क्या परछाई सच है?

अगर है, तो कैसे भरोसा करे कोई... उसमें तो छवि और भी मिली होती है... 
धुंधला होता है प्रतिबिम्ब, उसमे आईने  की नज़र होती है... 

फ़िर वो इमारत ही सच्ची होगी... 
पर कैसे... सच टूट कर बिखरता तो नहीं कभी... 
नींव से चोटी तक एक जैसा होता है... 
कोई सहारा नहीं होता... 
सच खुद ही नींव है... 

सच की तलाश का सफर जाने कब से जारी है,
जाने कब ख़त्म होगा... 

यूँ तो परछाई का क्या है तस्वीर से भी रिश्ता... 
तस्वीरें तो अक्सर टूट जाया करती हैं... 
परछाई कायम रहती है... किसी भी आकार में ढल जाती है,
कोई रंग नहीं होता इसका... 
तस्वीरों में तो रंग बदल जाया करते हैं... 

परछाई ही है अनंत... हर रूप में अटूट... 
शायद परछाई ही सच है...

Saturday, March 2, 2019

To Wish for You Bliss...

Life will present to you,
The gift of experiences…
Good or bad, value them.

Sometimes time will be tough…
It will pass, refuse to give up.

Some days you will feel you are too mature to be nervous or excited…
Bring out the child in you…and laugh harder.

There will be moments of loneliness that seem to be passing like ages…
Remember that you have a friend here, and that’s forever.

And please don’t forget, you are one of the finest people I have ever met…
Stay the same, no matter what.

And this is to tell you that your presence is cherished…
And to wish for you bliss, that lasts for a lifetime.

Monday, December 21, 2015

जब तुम मेरे पास होते हो...

तन्हाई से जाना है मैंने,
तुम्हारे होने का मतलब क्या है...
खुद में पूरी तो थी मैं पहले भी,
पर मेरे अस्तित्व में ये आयाम नहीं था...

तुम होते हो जब पास मेरे तो दिल में एक सुकून होता है,
कुछ सोचना नहीं, न समझना होता है,
बस जीना होता है 'हमारे' वक़्त को
मैं सही मायनों में ज़िंदा होती हूँ, जब तुम होते हो...

तुम होते हो जब पास मेरे, तो धूप और छाव सब सुहानी लगती है,
हाथ थाम चल दूँ तुम्हारा दूर कहीं, ये चाहत होती है
हर दिन मोहब्बत नया रंग ओढ़ लेती है,
और गहरी होती चलती है,
जब तुम होते हो...

बेफिक्र मैं, बिन नक़ाब, खुद को तुम्हारी आँखों में देख पाती हूँ,
और जान भी जाती हूँ प्यार तुम्हारा,
तुम मुझे मुझ जैसा ही चाहते हो,
कैसे कहूँ तुम मेरे लिए क्या हो?
बस समझ जाना खुद ही,
जैसे समझ जाते हो, मेरे दिल की हर एक बात, हर  बार,
जब तुम मेरे पास होते हो...

Sunday, March 22, 2015

Silence is Comfortable...

I don’t know why our paths crossed,
If there’s a reason or it happened because it had to, just like that.
I don’t know the reason why we are together in this frame of time…
Time, as they say, is an illusion, and this might also be…
I don’t know what holds us back and what takes us forward in the journey,
That may be a part of the discovery.

There are several things unknown,
But this one is certain for sure…
With you, time flies as if moments have captured ages,
And the ‘unknown’ only fears to bother…
There’s a certain melody in the heart, when we are together…
And silence is comfortable…

Thursday, February 26, 2015

To a dearest friend who truly truly cares…..

How time flies…
I stood there, stunned, and you flew away…
I wish I could stop you, I wish I could tell you…How much you matter to me…
Your love and honest care, will remain a blessing to me,
Where else will I ever find, a friend with this great jolly spree?

In a place of despair and solitude, you were the one waiting for me,
I never did a single favor expected, and you were always there when you were needed to be.
In retrospect I find, I have always been selfish and unkind,
But you stood tall, through the midst of all,
To protect me from darkness,
 And guide me towards light.

When I think, I realize,
I have been so unthoughtful,
So ungrateful,
How could I take for granted, the blessing God has sent for me!!

You even played a parent’s role, and scolded and nurtured me,
In this place of emptiness, you filled my days with glee,

How I wish you were here, and I could hold you tight and never let you go,
How I wish I could always stay for you, in times of joy and sorrow.
You always truly cared,
I think I never ever did.
Through the questions and the answers,
The chocolates and the medicines,
Tears and laughter,
People and life,
Decisions and judgments,
Punishments and rewards,
Confusions and solutions,
Guidance and freedom,
Commands and evaluations,
The words and the silence,
My anger and your peace,
I am going to miss that all, when we depart forever,
How I wish I could stop time and never ever let this go,
How I wish we could live our friendship, for all the coming ages as ago,

I don’t know what is meant by life, but I now know what life is for,
It is to live your days in joy, it is to love one another,
To spread happiness, like you do,
And to make friends who make life blissful,
It is to enjoy through the rain and storms,
And gets easier with people like you strong

Whenever you feel you are low,
Or are in the midst of a trouble and don’t find glow
Remember me…
Scold me if I don’t turn up…you have every right to
But keep this faith, I am there and will be there for you, no matter what,
Through the thick and thin,
Although I make mistakes, I am ready to correct them…
Although not visibly so, trust me I am there every single time...
And I understand your pain and emotions that follow,
And you are truly cherished, trust me on that…
And you are a blessing my friend, you are an angel to me…

Sunday, November 2, 2014

Window of The Soul...




From the dark, long tunnel,
This something creeps out,
Looking for a light,
And finds all shadows,
Yes! Shadows they are,
A multitude of colors,
All delusive!

How does one find the truth in solitude?
While always surrounded by souls,
Or these shadows that remain,
Of the fear of belonging,
And a love of sublime,
Duality is tough,
And you have to make choices!
No light to be found,
Still the shadows around!

And then you find peace,
When you stop looking out,
For it was there,
Clear, untouched!
And then you find light,
For it was there,
Trying to find you,
When you had kept shut,
The Window of the Soul!

Monday, November 12, 2012

आज जब तुम सपना देखो

आज जब तुम सपना देखो,
कहना मत मुझसे फिर आकर,
कि क्या तुमने सपना देखा,
कैसे नदी पहाड़ वहाँ के,
कैसा जीवन जीना होता,
मैंने तुम्हें दिया जो वही था,
सपने का एक बीज ज़रा सा,
कहकर तुमसे ये के जो भी,
चाहो तुम वो ख्वाब में पाना,
फिर तुम्हीं उसे हकीक़त बनाना | 

आज जब तुम सपना देखो,
कहना मत मुझसे फिर आकर,
कि "तुम मेरे ख्वाब में आना,
मेरे सपनों की दुनिया को,
सपनों जैसा तुम ही सजाना |"
मैं हूँ हर दम साथ तुम्हारे,
पर कौन यहाँ सदा को रहता,
जब भी मैं छोड़ूँ ये दुनिया,
तुम बस इस आत्मा को पाना,
और उसी से तृप्त हो जाना | 

आज जब तुम सपना देखो,
गर उसमें तुम काँटे पाओ,
और उस राह पर चल न पाओ,
कहना मत मुझसे फिर आकर,
कि "फूलों की राह बना दो",
मैं कह दूँगी तुम्हें यूँ भोले,
बना भी दूँ गर राह तुम्हारी,
मैं ही सुन्दर और यूँ न्यारी,
व्यर्थ होगा फिर जीवन तुम्हारा,
जो इसमें मुश्किल न संभाली,

"कल" जब तुम अब सपना देखो,
आज का सपना उसे बताना,
देखना आई कितनी परिपक़्वता,
कितना सीखा इस सफर में,
दो सपनों के बीच का अंतर,
(एक जन्म, दूसरा मृत्यु)
इसी का नाम तो ये जीवन है,
इस फर्क को सही पाटना,
हँस - हँस के यूँ जीवन काटना,
यही है वो जो मैंने सिखाया,
इसी पे अपना जीवन लगाया,

"मात-पिता बस यही हैं कहते,
जीवन में तुम चलते-चलते,
साथ सदा रखना एक सपना,
पूरी करे जिसे प्रेरणा!"
-------
मैं साथ रखूंगी वो बीज सदा ही,
जिससे ये प्रेरणा पाई,
अंगुली थामे जिनकी चलके,
सपनों ने थी ली अंगड़ाई,
हर एक दिन के सुबह का सूरज,
जिनके साये तले देखा था,
मैं साथ रखूंगी वो वृक्ष सदा ही,
जिससे ये जीवन बना था!

Monday, October 22, 2012

बस यही एक पल हो ज़िंदगी में

चाँद आज भी था उतना ही खूबसूरत,
शायद वही एक है जो हर रोज़ बदलता है,
और फिर भी बदलता नहीं |

बैंगनी छटा अँधेरी रात को बनाती और खूबसूरत, हरे पेड़ों के आसपास छाकर,
उस एक पल का वो नज़ारा कैसी छाप छोड़ जाता है मन पर,
जीना चाहता है ये फिर उसी पल में,
चाहता है ज़िंदगी में हर एक पल हो इसी के जैसा,
या फिर बस यही एक पल हो ज़िंदगी में,

सोच रही हूँ क्या था उस पल में आकर्षण,
जवाब है ये, कि उसमे उलझनें नहीं थीं,
हर रंग दूसरे में घुल सा रहा था,
फिर भी था कितना अलग हर एक से,

कितना पाक़, कितना साफ़,
कोई वहम नहीं, कोई भय नहीं,
बस प्रेम, ईश्वरीय अनुभूति वो,
निर्मल, निश्छल,
विराट किन्तु कितनी सूक्ष्म,
अलौकिकता उस पल की,
यूँ शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है,
उसे तो बस जिया जाना चाहिए !!

Friday, August 3, 2012

अभी तो मेरा स्वयं होकर जीना बाकी है !!

शुरुआत की थी जहाँ से मैंने,
सवाल तो अब भी है वही,
इस ज़िंदगी का मकसद तलाशते तो ज़िंदगी नहीं गुज़ार देनी है | 
कितना बदल गया वक़्त,
वक़्त के साथ मैं,
पर आज भी तन्हाई दस्तक देती है,
इसका एहसास आज भी बिल्कुल वैसा ही है,
था जैसे पहले | 

चार दीवारी, ये सन्नाटा, जुगनुओं की वही आवाज़,
तारों की चादर, वही चाँदनी,
वही हवा, वो एक एहसास और मैं,
इस रोशन अंधेरे में,
अकेले, शांत, हलचल नहीं,
आज तो मन भी स्थिर है,
जैसे समझ गया हो जीवन का अर्थ,
पा गया हो जैसे मौन का साहस | 
जो इस स्थिति में जी ले मन,
तो फिर क्या बाकी हो पा जाना इसे?

गुज़रे कुछ साल, भागती रही खुद से दूर,
और नतीजा ये हुआ, खुद को जान गई,
'कैसे?' नहीं जान पाई मैं क्योंकि,
कि कैसे हो पाता है कोई यूँ खुद से जुदा,
नकार कर अपने ही अस्तित्व को,
आत्म-ज्ञान तो मिलता ही है,
मृत्यु पर ही सही,
तो क्या अब मैं मृत हूँ?

शरीर तो धोखा ही था सदैव,
पर क्या मन अब नहीं रहा?
शायद ये एक हद तक सत्य है !
कुछ इच्छाएँ बाकी हैं,
शरीर छोड़ने नहीं देतीं | 
वरना मन तो है स्वच्छंद, आज़ाद,
शरीर में कैद नहीं रह पाता मेरा,
कब का उड़ जाता,
एक नए आकाश में लीन होने | 
पर है आज भी यहीं !

क्या बदला फिर इन सालों में?
कुछ बेड़ियाँ तोड़ पाई हूँ,
पर नई तैयार हैं, मुझे फिर कैद करने को आतुर,
और यहाँ, मैं मांग रही हूँ तन्हाइयों से हौसला,
अपनी स्वच्छंदता खोज लेने का,
भर देना अपने आसमां को,
संभावनाओं से अनंत,
और भरने का अपने मन की असली उड़ान,
जिसे पूरा करने मन अब भी बँधा है शरीर के साथ,
कुछ है जो बाकी है कर जाना,
तभी तो अभी निर्जीवता में प्राण बाकी हैं,

है अभी तो आसमां के तारे गिनना बाकी,
अभी तो मेरा स्वयं होकर जीना बाकी है !!

Tuesday, July 31, 2012

जहाँ आत्मा संवाद करती हो

एक दुआ भेजती हूँ आज तुम्हें,
इस पैगाम  के साथ,
कि रहे तुम्हारे साथ हमेशा,
एक साया प्यार का,
रहे ढाल बनकर ये छाया,
तुम्हें बचा ले हर एक धूप से,
कोई तकलीफ तुम्हें छू भी न पाए,
और हर दर्द तुम्हारा अब इसे मिल जाए |

माँगा है कुछ और भी ऐसा तुम्हारे लिए,
ज़रूरी है जिसका होना साथ,
तुमने तो शायद कभी चाहा नहीं,
या फिर चाह कर भी पाया नहीं,
माँगा है आज, कुछ पल का सुकून, तुम्हारे लिए,
और कुछ लम्हे तन्हाई के,
जिसमें तुम बस अपने साथ रहो,
और सोच सको, पहचान सको खुद को,
देख सको अपनी वो तस्वीर,
जिससे बस दूर जाना चाहा तुमने हमेशा,
यूँ खुद से दूर रहकर कैसे खुश रह पाओगे,
कैसे पा सकोगे वो सारी ख़ुशी जो बस तुम्हारे लिए हैं |
कब तक खुद को यूँ तकलीफ में रखोगे,
और कैसे चुपचाप देखूँ मैं तुम्हें इस तरह,

काश कि बस इतना हक़ दिया होता तुमने,
कि तुम्हारी तकलीफ बाँट सकूँ,
कि कुछ पल रो सकूँ तुम्हारे हिस्से के आँसू,
जिन्हें तुमने तो अपने दिल में दफ़्न कर दिया,
कभी न ज़िंदा होने के लिए,

काश कि बस इतना हक़ दिया होता,
कि एक-एक कर जुदा कर दूँ तुमसे,
तुम्हारा हर एक दर्द,
तुम्हारा हर एक डर,
और भीड़ में घिरा तुम्हारा अकेलापन,

काश कि आकर बस एक बार तुमने कहा होता,
कि हक़ दिया है तुमने मुझे,
सिर्फ कुछ पल तुम्हारे दिल में जा बसूँ,
वहाँ बस फिर ख्वाहिशें रहतीं,
वहाँ से बस फिर खुशियाँ बहतीं,
होता गर कोई आँसू भी,
तो कहता भी वो बस इन्हीं की दास्तान,
वहाँ बस फिर ख़्वाबों की परियाँ रहतीं,
और होती एक दुनिया जन्नत सी तुम्हारे लिए,
तुम्हारे ही दिल में,

काश कि बस एक बार तुमने,
हक़ से आकर मुझसे कह दिया होता,
वो सब कुछ जो तुम्हारे दिल में है,
मैं तो अब भी इंतज़ार में हूँ,
काश कि तुम अब कह दो मुझसे सच,
वक़्त गुज़रने से पहले |

काश कि तुम समझ जाओ,
मैं बस इतना ही चाहती हूँ,
कि तुम जियो तुम बनकर,
तुम्हीं से छुपकर तुम यूँ परेशानियों से न घिर जाओ !

तुम नहीं हो अकेले,
अपने मन के उस कोने में भी नहीं,
जिसे तुमने छुपा कर रखा है खुद से भी,
वहाँ तो मैंने तुम्हारी असल रोशनी देखी है,
वहाँ उस मन में हम दोनों एक दूसरे की परछाई ही हैं |
अंतर्मन के उस धरातल पर,
हमारे अस्तित्व बिलकुल एक जैसे हैं !
फिर कैसे नहीं समझ पाऊँगी मैं तुम्हें ?
क्यूँ नहीं जान पाऊँगी दर्द तुम्हारा !

बस हक़ दे दो मुझे इतना,
कि कह सकूँ तुमसे "मैं समझती हूँ तुम्हें"
बस कि रह सकूँ साथ तुम्हारे,
उस अकेलेपन में,
जिसे आज मैंने तुम्हारे लिए माँगा है |
रहें हम वहाँ निःशब्द |
और हमारी आत्मा संवाद करती हो |

Saturday, June 30, 2012

अनमोल

कितना अजीब सफर है ज़िंदगी,
अन्जाने ही लोग कैसे अपने हो जाते हैं,
किस राह से बिछड़ किस मंज़िल पर मिल जाते हैं | 

शायद समझा ही नहीं तुम्हें कभी मैंने पूरी तरह,
राहें हमारी मिल कर अलग होती रहीं,
पर तुम्हारी दोस्ती थी हर राह में साथ मेरे,
जाना ही नहीं था कि सफर आसान तो इसी ने किया था मेरा,

तुम्हारी भावनाओं से हरदम रही अन्जान,
हर वक़्त बस यही रहा यकीन,
कि तुम्हारे लिए नहीं है ज़िंदगी में अहमियत भावनाओं की,
पर मैं गलत थी,
और खुश हूँ की ऐसा है,

आज जाकर हुआ एहसास,
कि दूरियाँ नहीं करतीं अलग दिलों को,
जुड़े रहते हैं मन के तार,
अपने चाहे जहाँ रहें,
तुम्हें बस शुक्रिया अदा करना है,
मेरे साथ होने के लिए,
दूर रहकर भी मन के पास होने के लिए,

तुम्हें न हो गर यकीन फिर भी,
ये दोस्ती मेरे लिए हमेशा अनमोल रहेगी | 

Wednesday, June 27, 2012

तूफ़ान

कैसा डर है ये, कैसी अनिश्चितता,
क्या डरती हूँ तुम्हें खो देने से,
या फिर बस ये तुम्हारी विमुखता का डर है,

ये द्वंद्व जकड़े है मन को,
साफ़ सोचने नहीं देता,
ये कैसा तूफ़ान है मन में,
जिसने सारा आसमान धुंधला दिया मेरा,
छीन ली है मेरी उड़ान,

कैसे हो रही है प्यार से नफ़रत,
प्रेम के जज़्बे में द्वेष की जगह ही कहाँ है,
शायद वक़्त ही मुझसे ख़फ़ा है,
तन्हाई भी है, दिल भी, दर्द भी, और तुम नहीं हो,
मेरे लिए तो तुम हो मौजूद यहीं मेरे हर एक पल में,
पर क्या तुम्हारी कल्पनाओं में मैं हूँ, 
क्या थी मैं कभी?
या फिर हो पाऊँगी?

कितनी खामोश सी हैं ये तन्हाइयाँ,
अजनबी हो गई हैं जैसे,
मुझसे कुछ कहती ही नहीं,
अब तो अश्क़ भी उजागर नहीं होते,
कुछ रहा ही नहीं शायद जिसके लिए ये न बहे हों | 
थक गए हैं ये भी तो अब,
शायद मैं भी | 

धैर्य, कोई तो सीमा रखता होगा,
या बस सीमा को ही धैर्य रखना होगा हर बार?

ये बेफिक्री तुम्हारी मैं भी सीखना चाहती हूँ,
अपने हिस्से की शांति चाहती हूँ केवल,
हो सकता है मैं तुम्हारे प्यार के काबिल नहीं,
पर कुछ लम्हों का सुकून तो ईश्वर ने इन लकीरों में भी लिखा होगा | 

Monday, June 4, 2012

चाँद ने जोड़ा है तुम्हें और हमें

चाँद ने जोड़ा है तुम्हें और हमें यूँ,
इस चाँदनी में भीगे हो तुम भी कभी और हम भी कभी,

वक़्त तो था बस एक धोखा,
पल वो तुम्हारा एक था,
पल वो हमारा एक था,
साथ ही थे हम उस पल में,
तुम थे कहीं, हम थे कहीं,

दूरियाँ तो बस थीं एक वहम,
दिल से जुड़े थे, तुम भी वहीं , हम भी वहीं | 

Saturday, January 14, 2012

With You By My Side




In this haze, this mist of life,

Wherever I look,

the path ahead is uncertain.



Having absolutely no idea of where to move next,

I take a step forward,

removing all the pebbles in my way,

Crushing all those dead leaves

(those lifeless chapters of my life),

With this one hope and all eternal faith in my heart,

Of seeing you when the fog disappears,

Making everything else visible,

Wishing to feel the liveliness (with you)

in that fresh air of a pure, immortal love…



With you by my side,

nothing that I have ever dreamt of, seems impossible.



All those wonderful little elves of a heavenly dwelling that reside in these eyes,

Turning each beautiful thought,

into a mystique creation of reality,

Make this place so divine, so blissful…

With you by my side,

I know I have won profound intangible happiness,

With you by my side,

I have received an ineffable joy,

An infinitude of love.


Wednesday, May 17, 2006

नाश धरती का

धरातल से बढ़कर वह पेड़ नभ तक पहुँचा,
वहाँ पहुँच कर भी उसने नभ में उड़ने का सोचा |
कितना महान है वो जो शिखर पर पहुँच कर भी अपनी महानता दिखलाए,
अपनी खुशी त्यागकर दूसरों की खुशी में भी मुस्काए |
उसने अपना सर्वस्व दान किया औरों के लिए,
जिन्होंने कुछ किया उसकी ख़ातिर |

आज का ज्ञानी मनुष्य अब भी अज्ञानी है इसमें कोई संदेह नहीं,
क्या उसने कभी वन बनाने की सोची है कहीं?
मनुष्य ने बड़े-बड़े सपने देखे, पूरा भी किया उन्हें,
मगर हे मनुष्य! इससे दूसरों को कितना कष्ट पहुँचा,
कभी सोचा है तूने?

मनुष्य के किये परिवर्तनों के कारण तूफ़ान और सुनामी आने लगी है,
धीरे-धीरे ये सौंदर्य संपदा कम होने लगी है |
परिवर्तन तो धरती के बाहर भी हो रहे हैं,
अंतरिक्ष फैला जा रहा है, ग्रह-नक्षत्र जगह बदल रहे हैं|
कुछ नए बन रहे हैं तो कुछ नष्ट हो रहे हैं,
इस धरती को बचाने की हम सिर्फ प्रार्थना कर रहे हैं!

अपनी ओर बढ़ते हुए नाश के राक्षसी हाथ को रोकना होगा,
तभी हमारा और इस धरती का बचाव संभव होगा|

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